Saturday 23 July 2016

गुलजार का फिल्मी साहित्य ‘मंजरनामा’ शैली में

गुलजार बॉलीवुड में वह नाम है जिन्होंने 6 दशक से अपने गीत, शायरी, लेखन और निर्देशन से फिल्मी जगत के साथ-साथ साहित्य को भी गुलजार करते आए हैं। उनकी जितनी भी तारिफ की जाए वह कम है। उनके बारे में फिल्म और साहित्य से लगाव की ऐसी भी व्याख्या की जा सकती है। जैसे- गुलजार एक मशहूर शायर हैं जो फिल्में बनाते हैं। गुलजार एक अप्रतिम फिल्मकार हैं जो कविताएं लिखते हैं। गुलजार ऐसे गीतकार हैं जो किताब भी लिखते हैं। गुलजार ऐसे लेखक हैं जो फिल्म भी लिखते हैं।  गुलजार ने अपनी फिल्मी करियर की शुरुआत बिमल राय के सहायक निर्देशक के रूप में शुरू किया। फिल्मों की दुनिया में उनकी कविताई इस तरह चली कि हर कोई गुनगुना उठा। अनूठे संवाद, अविस्मरणीय पटकथाएं, आसपास की जिन्दगी के लम्हे उठाती मुग्धकारी फिल्में। परिचय, आंधी, मौसम, किनारा, खुशबू, नमकीन, अंगूर, इजाजत—हर एक अपने में अलग। उन्होंने कई किताबें लिखीं। चौरस रात और रावी पार में कहानियां हैं तो गीली मिटटी एक उपन्यास। कुछ नज्में, साइलेंसेस, पुखराज, चांद पुखराज का, आॅटम मून, त्रिवेणी वगैरह में कई यादगार कविताएं लिखी हैं। गुलजार बच्चों से बहुत प्रेम करते हैं। बहुलोकप्रिय गीतों के अलावा ढेरों प्यारी-प्यारी किताबें लिखीं जिनमें कई खंडों वाली बोसकी का पंचतंत्र भी है। यह तो गुलजार की बात हो गई। 

क्या है मंजरनामा
हाल ही में राजकमल प्रकाशन समूह ने गुलजार के फिल्मों को लेकर एक श्रृंखला निकाली है और उस शैली को ‘मंजरनामा’ नाम दिया है। वैसे साहित्य में ‘मंजरनामा’ एक मुक्कमिल फार्म है और यह एक ऐसी विधा है जिसे पाठक बिना किसी रुकावट के रचना का मूल आस्वाद लेते हुए पढ़ सकें। प्रकाशन के अनुसार मंजरनामा पेश करने का एक उद्देश्य तो यह है कि पाठक इस फार्म से रू-ब-रू हो सकें और दूसरा यह कि टी.वी. और सिनेमा में दिलचस्पी रखनेवाले लोग यह देख-जान सकें कि किसी कृति को किस तरह मंजरनामे की शक्ल दी जाती है। यहां गुलजार की तीन रचनाओं को मंजरनामा फर्म में पेश किया गया जो किसी भी आॅनलाइन बुक्स स्टोर (online bookstore) पर उपलब्ध है। इन किताबों की श्रृखंला www.yourbookstall.com पर उपलब्ध है यहां कम्बो पैक में भी इस सीरिज के कितबों को भारी डिस्काउंट पर बाई बुक्स आॅनलाइन (Buy books online) खरीदा जा सकते है। सबसे पहले हम बात करते हैं किनारा की। 
किनारा (Kinara)
‘किनारा’ प्यार के अंतर्द्वन्द्व की कहानी है, जो संयोगों और दुर्योगों के बीच से होकर जाती है। एक तरफ प्यार की वफादारी है जो विवंगत प्रेमी की स्मृतियों से भी दगा नहीं करना चाहती और दूसरी तरफ नए प्यार का अटूट समर्पण है जो एक दुर्घटना के गिल्ट को धोने के लिए अपना सब कुछ हारने को तैयार है, लेकिन नियति अपने लिखित को जब तक उसका एक-एक हर्फ सच न हो जाए, अंत तक उनके बीच बैठी बांचती रहती है। पीड़ा के अपने चरम पर पहुंच जाने तक। गुलजार की फिल्में इतने स्वाभाविक ढंग से फामूर्ला-मुक्त होती हैं कि हम लोग जो साहित्य में भी फामूर्लों के अभ्यस्त रहे हैं और फिल्मों में भी उनकी कथा-योजना को देख हैरान-से रह जाते हैं। फिल्म ‘किनारा’ और उसकी कहानी भी ऐसी ही है।
किताब (Kitab)
यह जिंदगी की किताब है जिसे बाबला स्कूल से बाहर शहर में, अपने दोस्त पप्पू के साथ, घर में अपने जीजा और दीदी के रिश्ते की धुप-छांव में और फिर घर से भागकर मां तक पहुंचने के अपने दिलचस्प सफर में पढता है और फिर वापस एक नए जज्बे के साथ स्कूली किताबों के पास लौटता है। फूल को चड्डी पहनाने वाले गुलजार की फिल्म ‘किताब’ का यह मंजरनामा फिर साबित करता है कि बच्चों के मनोविज्ञान को समझने में जैसी महारत उन्हें हासिल है वह दुर्लभ है, फिल्मो में भी और गुलजार के साहित्य में भी।
 

मौसम (Mausam)
मौसम एक अथाह प्रेम, प्रेम के गहरे सम्मान और शुद्ध-सुच्चे भारतीय मूल्यों में रसी-पगी गुलजार की इस फिल्म को न देखा हो ऐसे बहुत कम लोग होंगे, लेकिन मंजरनामे की शक्ल में इसे पढना बिलकुल भिन्न अनुभव है। इतने कसाव और कौशल के साथ लिखी हुई पटकथाएं निश्चित रूप से सिद्ध करती हैं कि मंजरनामा एक स्वतंत्र साहित्यिक विधा है। बार-बार देखने लायक फिल्म की बार-बार पठनीय पुस्तकीय की यह प्रस्तुति है।

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