Friday 1 April 2016

अपने अनुभवों को किताबों की शक्ल देते आज के नेता...

देश में कवि-लेखकों का नेता बनना एक परंपरा और स्वभाविक बात थी। स्वतंत्रता संग्राम से लेकर अभी तक कई ऐसे कवि है जो बाद में बड़े नेता बने। अगर हम तत्कालिक बात करें तो अटल बिहारी वाजपेयी इसके जिवंत उदाहरण हैं। उनकी भाषा और वाकपटुता में ही कवि की झलक दिखती थी। उनकी भाषण और कविता पर लोग तालियां बजाते नहीं थकते थे। यह वहीं समय था जब कवि-और लेखकों का नेता बनने का दौर समाप्त सा हो गया। इसके बाद एक नया दौर शुरू हुआ जिसमें किताबों के माध्यम से नेता अपने खट्टे-मीठे अनुभव, राजनीतिक जीवन में उतार-चढ़ाव की बाते लोगों तक पहुंचाने के लिए कलम का सहारा लिया। ऐसी किताबों में वह अपनी आत्मकथा, राजनीतिक यात्रा के अनुभव लिखते ही है कुछ ऐसी भी घटनाएं या संस्मरण उसमें होती हैं जिससे वह किताब चर्चा में आ जाती है। चर्चा के कारण ऐसी किताबों की डिमांड होती है और यह आॅनलाइन बुक्स स्टोर (online books) से लेकर आॅफ लाइन बुक्स स्टोर तक यह किबातें खूब बिकती हैं।
                           ऐसी बात नहीं है कि लेखक नेताओं की किताब पर हंगामा न मचा हो। चाहे वह भाजपा के लौह पुरुष लालकृष्ण आडवाणी की  किताब ‘माई कंट्री, माय लाइफ’ हो या कांग्रेस के पूर्व नेता नटवर लाल की ‘वन लाइफ इज नाॅट एनफ’हो। वैसे पिछले एक-दो सालों में देखा जाए तो कांग्रेस के नेताओं की किताबें ज्यादा चर्चा में रहीं। इसमें नटवर सिंह की किताब पर खूब विवाद भी हुआ था और शशि थरूर की किताब भी काफी चर्चा में रही थी। वहीं पिछले माह महामहिम राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की किताब ‘द टर्बुलेंट ईयर्स:1980-1996’ की लाॅन्चिंग हुई।
हाल ही में यूपीए सरकार में वित मंत्री रहे कांग्रेस वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम की ‘स्टैंडिंग गार्ड: ए ईयर आॅफ आॅपोजिशन’ की लाॅन्चिंग हुई। दूसरी ओर कांग्रेस के कई नेता लेखक बनने के कतार में हैं। अलग-अलग विषयों पर उन्होंने किताबें लिखनी शुरू कर दी हैं। यहां कांग्रेस पार्टी में ऐसे दो नेताओं की खूब चर्चा है, जो इन दिनों किताब लिख रहे हैं। उनमें से एक कांग्रेस महासचिव जनार्दन द्विवेदी हैं और दूसरे उनके राजनीतिक शिष्य मनीष तिवारी हैं। मनीष तिवारी दो किताबें लिख रहे हैं। एक किताब कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दस साल के ऊपर है और दूसरी किताब भारत में राजनीतिक पार्टियों को होने वाली फंडिंग के ऊपर है। कांग्रेस पार्टी के वरिष्ठ नेता वीरप्पा मोईली को सरस्वती सम्मान मिलने की खबर सब जगह छपी। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने उनको सम्मानित किया।
          भाजपा नेताओं की बात की जाए तो इस समय इस पार्टी के नेता भी अपनी किताबों के कारण बेहद चर्चा में रहें। सीनियर पार्टी लीडर जसवंत सिंह अपनी किताब ‘जिन्ना: इंडिया, पार्टीशन, इनडिपेनडेंश’ को लेकर काफी चर्चा में रहे और पार्टी की कार्रवाई का उन्हें सामना भी करना पड़ा। इसके अलावा पत्रकार और भाजपा के पूर्व नेता अरुण शौरी ने ऐसे तो कई किताबें लिखीं लेकिन वे अपनी किताब ‘पार्लियाट्री सिस्टम’ को लेकर चर्चा में रह चुके हैं। अपने कार्यकाल को लेकर यशवंत सिन्हा ‘काॅनपफेशन्स आॅफ स्वदेशी रिफर्म: माई इयर्स एज फाइनेंस मिनिस्टर’ लिख चुके हैं। इसके अलावा भी कई ऐसे भाजपा नेता है जिन्होंने अपनी किताब के माध्यम से अपनी बात रखने की कोशिश की है।
           नेताओं के लेखक बनने से समाज को और आज के युवा पीढ़ी को सबसे ज्यादा फायदा हुआ है। क्योंकि ऐसी किताबों से राजनीतिक के उस गलियारे का पता चलता है जिस गलियारे से देश की जनता वंचित है। वैसे नेताओं द्वारा किताब लिखे जाने का सिलसिला चलना चाहिए ताकि लोगों की राजनीति की अंदरूनी बातों का भी पता चलता रहे।

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