देश
ने बंटवारे का दर्द 1947 में सहा लेकिन इसके घाव अब तक नहीं भरे। वैसे
विभाजन किसी देश की भूमि का ही नहीं होता, विभाजन लोगों की भावनाओं का भी
होता है, अपनों का भी होता है और प्यार का भी होता है। विभाजन का दर्द वो
ही अच्छी तरह जानते हैं, जिन्होंने प्रत्यक्ष रूप से इसको सहा है। बंटवारे
के दौरान जिन्हें अपना घर-बार छोड़ना पड़ा, अपनों को खोना पड़ा...यह दर्द आज
भी उन्हें सालता रहता है। भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के दर्द को लेकर कई
किताबें लिखी गर्इं, जिसमें से कई किताबे तो इतिहास बन गर्इं। इन्हीं
किताबों में से कुछ ऐसी भी किताबें हैं जो दर्द के साथ-साथ प्यार को लेकर
भी लिखी गई। इन्हीं कुछ किताबों में से हम चुनिंदा किताबों को लेकर आए हैं
जो इतिहास, दर्द, भावना और प्यार समेटे हुए है।
पाकिस्तान मेल (Pakistan Mail )
लेखक : खुशवंत सिंह
प्रकाशन : 1956

पिंजर
लेखक : अमृता प्रीतम ( AMRITA PRITAM)
इस
किताब की पूरी भूमिका विभाजन पर टिकी है, वैसे ये मुख्तय पंजाबी भाषा में
लिखी गई थी, लेकिन खुशवंत सिंह ने इसका अनुवाद हिंदी में किया। ये उपन्यास
एक हिंदू लड़की पूरो और मुस्लिम लड़के राशिद की प्रेम कहानी है। पिंजर की
कथा-नायिका पूरो इस कसौटी पर बिल्कुल खरी उतरती है। वह स्वयं शोषित है
किंतु न केवल स्वयं को संभालती है बल्कि अपने जैसे कई शोषितों का सहारा भी
बनती है, उन्हें सुरक्षा प्रदान करती है। किताब भले भारत-पाक विभाजन की
त्रासदी पर आधारित है किंतु इसके माध्यम से लेखिका ने स्त्रियों पर हुए
अत्याचार, अन्याय एवं शोषण की ही दास्तान बयां की है जिसमें कथा-नायिका
पूरो एक सशक्त नारी के रूप में प्रस्तुत है। यह वह उपन्यास है, जो दुनिया
की आठ भाषाओं में प्रकाशित हुआ है और जिसकी कहानी भारत के विभाजन की उस
व्यथा को लिए हुए है, जो इतिहास की वेदना भी है और चेतना भी। इस पर एक
फिल्म भी बन चुकी है। इस फिल्म को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजा गया।
तमस (Tamas)
लेखक : भीष्म साहनी
प्रकाशन : 1974

कितने पाकिस्तान
लेखक : कमलेश्वर (Kamleshwar)
प्रकाशन : 2000
कमलेश्वर
का यह उपन्यास मानवता के दरवाजे पर इतिहास और समय की एक दस्तक है। इस
उम्मीद के साथ कि भारत ही नहीं, दुनिया भर में एक के बाद दूसरे पाकिस्तान
बनाने की लहू से लथपथ यह परम्परा अब खत्म हो। यह उपन्यास कमलेश्वर के मन के
भीतर चलने वाले अंतर्द्वंद्व का परिणाम माना जाता है। हिंदी के तमाम
उपन्यासकारों की श्रेणी में युगचेता कथाकार कमलेश्वर का उपन्यास कितने
पाकिस्तान समकालीन उपन्यास जगत में मील का पत्थर साबित हुआ है। इस उपन्यास
ने हिंदी कथा साहित्य तथा साहित्यकारों को वैश्विक रूप प्रदान किया।
कमलेश्वर ने उपन्यास के बने बनाए ढांचे को तोड़ कर लेखकीय अभिव्यक्ति के लिए
दूर्लभ द्वार खोलकर एक नया रास्ता दिखाया। इस रचना में लेखक ने इतिहास और
भूगोल की सीमाओं को तोड़ने का प्रयास कर मनुष्य की वास्तविक समस्याओं एवं
चिंताओं को सामने रखने का सफल प्रयास किया है। इस पुस्तक के प्रथम संस्करण
की भूमिका में कमलेश्वर ने लिखा है कि मेरी दो मजबूरियां भी इसके लेखन से
जुड़ी है। एक तो यह कि कोई नायक या महानायक सामने नहीं था, इसलिए मुझे समय
को ही नायक, महानायक और खलनायक बनाना पड़ा। इस उपन्यास ने आज के टूटते
मानवीय मूल्यों को सँजोने तथा दहशत की जिंदगी में मानवता की खोज की है। ये
एक ऐसा उपन्यास है, जिसमें तथ्यों को काल्पनिकता के धागे में पीरो कर
कमेलश्वर ने एक सर्जनात्मक कहानी लिखी है। 2003 में उन्हें इस उपन्यास के
लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। ये उपन्यास
हिंदू-मुस्लिम संबंधों पर आधारित है।